ना है मुझे किसी से शिकायत, ना करनी है किसी की शिकायत मुझे,
पूछो ना हाल मुझे मेरा, इस जहाँ में, जी रहा हूँ तो मैं कैसे।
दर्द को तो बनाया है तो साथी, करूँ मैं शिकायत इसकी तो कैसे?
सुख-चैन की गलियाँ भूल गया हूँ, करूँ इन गलियों को याद कैसे?
हर हाल में तो है जीना जीवन में, भूलूँ तो यह बात तो मैं कैसे?
कर रहा है दुःख शरारत तो जीवन में, इस बात की करूँ शिकायत कैसे?
दुःख दर्द से भरी है झोली मेरी किस्मत की, करूँ खाली मैं वह तो कैसे?
हर साँस दी हुई है प्रभु की, दिला रही है याद प्रभु की भूलूँ मैं कैसे?
हूँ मैं फूल प्रभु के आँगन का, खिलना है तो मुझे, खिलाये प्रभु जैसे,
करनी नही है शिकायत किसी की, करनी है तो शिकायत मेरी तो मुझ से।
सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)