कातिल तेरी ऩजर का तीर, मेरे दिल के आर पार निकल गया
मुझे यकीन मिल गया, तेरे दिल पर मेरा बसेरा हो गया।
चाहत थी तेरे मिलन की, इस बहाने से, मिलन तो तेरा हो गया,
यादों के तीर तूने साथ में ऐसा चला दिया, तेरी यादों में खो गया।
आस उठती है मेरे दिल में, तेरी झलक की ख्वाहिश दिल में जगा गया,
इस तरह बसेरा, तेरे दिल में मेरा तो हो गया, बसेरा हो गया।
चला ना समय का पता, याद बनकर जहाँ तू दिल में रह गया,
दूर रहकर भी, तू मेरे दिल से दूर ना रहा, दूरी मेरी मिटा गया।
रोक ना सकेगी कोई रुकावट हमें, जो नज़रों के तीर का आना जाना हो गया,
रुक गया था मिलन का जो सिलसिला, वह फिर से शुरू हो गया।
लफ्ज ना निकलते थे, फिर भी पैगाम का आना जाना हो गया,
तू जहाँ भी हो खुशहाल रहे, मैं हर दम तेरी यादो में खुश रहूँगा।
सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)