नजाकत भरी है कहानी, जवानी है दीवानी, फिर भी चाहे ना कोई, आके चली जाये जवानी
रंग वह नये नये लाये, रुप नये नये दिखलाये, बुढ़ापे तक तो वह पहुँचाए
अलग है तो उसकी मस्ती, ज़िंदगी लगे उसे सस्ती, है उनकी तो एक अलग हस्ति।
रहे तंग सब को तो वह करती, लगे सब को फिर भी प्यारी, है जवानी की ऐसी कहानी।
कभी सुख की कभी दुःख की गलियों में वह फिरती, फिर भी देती है वह नशीली जिंदगानी
रुप दिल में जो समाया, पाना तो उसे चाहा, खुद-खुद को दाँव पर वह तो लगाती।
उमंग दिल में छाये, दिन रात दिल में वह छाये, जीवन में पाना, बन जाये मंजिल उनकी।
ना रास्ता तय तो जब वह करती, हर रास्ते का सफर, बन जाये सफर उनकी।
अंबर के ऊपर या, धरती के अंदर, जो हो मंजिल, ना मंजिल उन्हें ड़रा सकती।
जवानी तो लिखती रहती है उनकी कहानी, ब़ुढापे में तो वह खुद उसे पढ़ती।
सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)