कौन जाने दिल में क्या हो जाता है, दिल में क्या हो जाता है
जग में दिल को खोजने निकला, दिल दिल में खो जाता है।
ढूँढ़ते ढूँढ़ते मैं जहाँ-जहाँ फिरा, ना पता मुझे दिल का मिला
दिल पसंद करने को निकला हूँ, दिल ने पसंद मुझे कर लिया है।
फेरूँ नज़र जग में जहाँ जहाँ भी, आखिर दिल में ही रुक जाता हूँ
जग में ना कोई किसी का रहा, दिल भी मेरा, मेरा ना रहा है
जहाँ भी जाऊँ, दिल दिल को ढूँढ़ता है, दिल-दिल में खो जाता है
दिल की बात दिल ने ना सुनी, बात दिल में ही रह जाती है।
कहना चाहूँ जिस दिल को, वह दिल ना ढूँढ़ सका हूँ
सोचते सोचते, ना जाने दिल में क्या हो जाता है, दिल दिल में खो जाता है।
सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)