चले जा रहे हैं, बिना सोचे जग में, चले जा रहे हैं
चले जा रहे हैं, जग के पीछे-पीछे, चले जा रहे हैं।
मुसीबतों के ढंग लिये जा रहे हैं, बढ़ाये जा रहे हैं
पहुँचना कहाँ है, बिना सोचे चले जा रहे हैं।
जीवन में नये नये मोड़ पर, हम घबराये जा रहे हैं।
आगे भी तू, पीछे भी तू, तुझे ही साथ में लिये जा रहे हैं।
ना हमें है पता, हम कहाँ जा रहे हैं, चले जा रहे हैं,
सपनो में भी रहे हैं चलते, जागते भी हम चले जा रहे हैं।
तुझे ढूँढ़ते-ढूँढ़ते, जीवन में तो हम, चले जा रहे हैं,
कभी सब मान भूल के, कभी मान में हम, चले जा रहे हैं।
सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)