भूल के जीवन में खुद की खुदाई, करो ना किसी की बुराई।
दिल में है कुछ, मुख पर रहे कुछ, करो ना दिल से दिल की बेवफाई।
चलो जीवन में सच्चाई की राह पर, इसी में है तो खुद की भलाई।
इच्छाएँ रही हैं उभरती दिल में जो तूने है तो दबाई,
जीना सोच समझ के जीवन में, करो ना हर एक बात में घाई।
सच्चाई पर रखो जीवन में भरोसा, रखो दिल में तो सच्चाई।
करने दी है अब तक मनमानी, करो अब उसकी भरपाई।
दबा क्यों दिया अंतर की आवाज को, क्यों बात उसकी ठुकराई।
क्यों ना दिया महत्त्व अनुभव को, यह नहीं है कुछ सुनी सुनाई।
अंतर की आवाज को करो बुलंद इतना, राह उठे तेरी जगमगाई।
सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)