ओ इन्सान बन ना नादान, कर ले जीवन में तेरे कर्मों की पहचान,
जब आया इस जग में कर्मों से, कर ले जीवन में तेरे कर्मों की पहचान।
श्वास-श्वास में, रग-रग में तेरे, छुपे है तेरे ही भगवान,
अब बन न नादान करले तेरे जीवन में तेरे ही भगवान की पहचान।
सुख दुःख तो है बादल जीवनमें, चले जायेगे देकर पल दो पलकी छाँव
बनकर नादान इस जीवन में, दिल से समझ ले आया बनकर दो दिन का मेहमान।
आया है जब जीवन में, दिल से समझ ले आया बनकर दो दिन का मेहमान,
मिला है जीवन में मानव तन अनमोल संपत्ति कर ले प्रभु की पहचान।
सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)