क्या बनना चाहा था इस जहाँ में, क्या से क्या बना दिया,
रहना चाहता था वफादार तेरा, तेरा गुनाहगार बना दिया
हमदर्द का दर्द बाँटना चाहा था, बेदर्दी से मुँह फेर लिया,
अदा करना चाहता था शुक्र तेरा, तेरा याचक मुझे बना दिया।
वक्तने खेल ऐसा खेला, मुझे तेरे सामने काबिल ना रहने दिया,
तूने मुझे इन्सान बनाया, जमाने ने मुझे इन्सान ना रहने दिया,
उम्मीदें लेकर आया जहाँ में, वक्त ने नाउम्मीदों को घर बना दिया।
सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)