बात तो है कुछ कहने की, कुछ सोचने की, कुछ समझने की,
दिखाई देता नही जग में, तो उठती है तड़पन दिल में, उन्हे क्यों मिलने की।
स्थिर रह नही सकता कोई जग में, है कोशिश सबकी स्थिर रहने की,
हर दर्द की दवा नहीं है जग में, करते हैं कोशिश सब दर्द छुपाने की।
हर दिल में तो है जलन, दिल में तो कोई न कोई तड़पन की,
आये क्यों जग में, जायेंगें कहाँ, कोशिश है सबकी यह जानने की।
हर दिल में तो दया छिपी है, करती है कोशिश तो उन्हें जगाने की,
करते है कोशिश सब तो जग में सुनाने की, ना किसी की सुनने की।
मुश्किल है जग में हर बात में सुखी रहना, अन्य को सुखी रखने की।
सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)