Hymn No. 6324 | Date: 25-Jul-1996
है बेमिसाल तो वह, दूँ तो मैं मिसाल उन्हें किसकी?
hai bēmisāla tō vaha, dūm̐ tō maiṁ misāla unhēṁ kisakī?
સદગુરુ મહારાજ (Sadguru Maharaj)
1996-07-25
1996-07-25
1996-07-25
https://www.kakabhajans.org/bhajan/default.aspx?id=12313
है बेमिसाल तो वह, दूँ तो मैं मिसाल उन्हें किसकी?
है बेमिसाल तो वह, दूँ तो मैं मिसाल उन्हें किसकी?
दूँ जो जो भी मिसाल उन्हें, लगे वह सब तो अधूरी ही अधूरी।
है गुरु मेरे तो ऐसी हस्ति, खुद ही तो हैं मिसालों की हस्ति
है तेजपुंज तो वह ऐसे, सूरज देखे जो उन्हें, चमकना भी भूल जाये।
है चरण तो उनके ऐसे, सब सिर झुकाकर बैठे है उनके चरणों में,
है दिल तो उनका ऐसा, सब जानकारी का है मानो पूरा दरिया।
आँखें हैं तो ऐसी, फेंके जिसपर वह किरण, उठे आनंद की वहाँ भरती
बाहु है उनके ऐसे, सारा संसार लपेटे हुए जिसमें बैठे।
निकले शब्द जब मुँह से, लगे बज रही है धीर गंभीर बंसी,
दिल है तो ऐसा कोमल, है दिल में तो भरी भारी प्रभु की हस्ति।
है वह स्वयं ही, स्वयं की मिसाल, दूँ मैं मिसाल उन्हें किसकी
हे मेरे सिद्धनाथ बाबा, स्वीकारो वंदन तो मेरी।
https://www.youtube.com/watch?v=VuZ1fTeSutA
Satguru Shri Devendra Ghia (Kaka)
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है बेमिसाल तो वह, दूँ तो मैं मिसाल उन्हें किसकी?
दूँ जो जो भी मिसाल उन्हें, लगे वह सब तो अधूरी ही अधूरी।
है गुरु मेरे तो ऐसी हस्ति, खुद ही तो हैं मिसालों की हस्ति
है तेजपुंज तो वह ऐसे, सूरज देखे जो उन्हें, चमकना भी भूल जाये।
है चरण तो उनके ऐसे, सब सिर झुकाकर बैठे है उनके चरणों में,
है दिल तो उनका ऐसा, सब जानकारी का है मानो पूरा दरिया।
आँखें हैं तो ऐसी, फेंके जिसपर वह किरण, उठे आनंद की वहाँ भरती
बाहु है उनके ऐसे, सारा संसार लपेटे हुए जिसमें बैठे।
निकले शब्द जब मुँह से, लगे बज रही है धीर गंभीर बंसी,
दिल है तो ऐसा कोमल, है दिल में तो भरी भारी प्रभु की हस्ति।
है वह स्वयं ही, स्वयं की मिसाल, दूँ मैं मिसाल उन्हें किसकी
हे मेरे सिद्धनाथ बाबा, स्वीकारो वंदन तो मेरी।
सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)
hai bēmisāla tō vaha, dūm̐ tō maiṁ misāla unhēṁ kisakī?
dūm̐ jō jō bhī misāla unhēṁ, lagē vaha saba tō adhūrī hī adhūrī।
hai guru mērē tō aisī hasti, khuda hī tō haiṁ misālōṁ kī hasti
hai tējapuṁja tō vaha aisē, sūraja dēkhē jō unhēṁ, camakanā bhī bhūla jāyē।
hai caraṇa tō unakē aisē, saba sira jhukākara baiṭhē hai unakē caraṇōṁ mēṁ,
hai dila tō unakā aisā, saba jānakārī kā hai mānō pūrā dariyā।
ām̐khēṁ haiṁ tō aisī, phēṁkē jisapara vaha kiraṇa, uṭhē ānaṁda kī vahām̐ bharatī
bāhu hai unakē aisē, sārā saṁsāra lapēṭē huē jisamēṁ baiṭhē।
nikalē śabda jaba mum̐ha sē, lagē baja rahī hai dhīra gaṁbhīra baṁsī,
dila hai tō aisā kōmala, hai dila mēṁ tō bharī bhārī prabhu kī hasti।
hai vaha svayaṁ hī, svayaṁ kī misāla, dūm̐ maiṁ misāla unhēṁ kisakī
hē mērē siddhanātha bābā, svīkārō vaṁdana tō mērī।
English Explanation |
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Shree Kakaji is worshipping his Sadguru Siddhnath Babaji in this bhajan and narrating his feelings and describing about his magnificent Guru. This beautiful bhajan also portrays the divine relation and depth in the relation of a Guru and disciple.
Kakaji says
His Guru is unmatched, incomparable, with anybody in this world.
He further says whose example shall I give him as all the examples fall incomplete in front of him
He very proudly says that his Guru is a figure of examples, a cluster of brightness even the sun looses it's shine infront of him.
He has Lotus feet where all sit bowed at his feet.
His large heart is a river of knowledge.
Ray's are falling from his sparkling eyes and on whomsoever these rays fall is the lucky one who feels serenity and happiness.
When he speaks is like listening to a flute.
His huge arms are such that can hold the whole world in it.
He is soft hearted in whose heart the Lord resides.
Further Kakaji prays that his Guru is himself an example whose example shall I give him.
O' my Siddhnath Babaji accept my worship.
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