इकरार कर रहा हूँ, प्रभु आज मैं तुझमें ऐतबार कर रहा हूँ।
गलतियों की राह पर मैं चल रहा था, सही राह पर चलने की कोशिश कर रहा हूँ।
कामयाबियों के चक्कर में गुमनाम हो गया था, सही राह पर आने की कोशिश कर रहा हूँ।
मतलब से भरी हुई थी दुनिया मेरी, हर मतलब में से मैं मतलब ढूँढ़ रहा हूँ।
हर चीज जग में है भरी भरी, चाहत की दिल में है ना कमी, है पुकार मेरी दर्द भरी,
छोड़ ना सका राह बंधनों की जग में, बंधनों में मेरी मुक्ति ढूँढ़ रहा हूँ।
छुपा हुआ था प्यार जो मेरे दिल में, आँखों में और होठों पर न आ सका,
कमी ना थी कोई, जीवन में मेरे, फिर भी जीवन में मैं कमी महसूस कर रहा हूँ।
जब मालिक है तू जग का, रखना हाथ मेरे सिर पर, मैं यह अरज कर रहा हूँ।
जो जो भी हो मिलावट, दिल में तो मेरे, साफ उन्हें करना यह ख्याल में रखना।
सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)