लकीरें पड़ी हैं जो हाथ में, करे राज जीवनभर वह मुझ पर
वह बात मुझे मंजूर नहीं, वह बात मुझे मंजूर नहीं
है कोमल दिल तो पास में, रहे सहता हर दम वह सितम, वह बात मुझे...
मिला है दिमाग तो जीवन में, चढ़ता रहे जंग तो उस पर, वह बात मुझे...
मिली जिव्हा जीवन में, रहे करती वह फिजूल बात, वह बात मुझे...
मिला हाथ तो जीवन में, देते देते वह जो थक जाये, वह बात मुझे...
करता हूँ विचार तो सदा, रहे किसी का उसमें अकल्याण, वह बात मुझे...
लेता रहा हूँ जग में तो श्वास, उपयोग बिना वह छूट जाय, वह बात मुझे...
फिरती रहे नज़र जग में सदा, गलत देखने में मग्न हो जाये, वह बात मुझे...
दर्द और स्वार्थ में आँसू तो मेरे बह जाएँ, वह बात मुझे...
संजोग जीवन में मुझे जो मजबूर बनाते जाएँ, वह बात मुझे...
सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)