क्या क्या करिश्मा दिखाये प्रभु तूने तो इस जग में,
स्वयं की ज्योत जला दी तूने इस जग के कोने-कोने में।
तन बदन रखा तूने गरम, तेरी इस जलती ज्योत ने,
निकल गयी जब यह ज्योत, बना दिया तो ठंडा इसे
रची सृष्टि ऐसी, नज़र में दिखाई दे, रचने वाला तू ना दिखाई दे
किया बंदोबस्त तूने ऐसा, जग का कोना, तेरे बिना खाली ना रहे
जग में खेल रहा है तू खेल, सब में रह के खेल खेल के
ना रहता है याद किसी को जग में, तू ही तो खेल खेलता है
फल फूल बनाये तो जग में तूने तो विविध प्रकार के
इन्सान भी बनाया तूने इस जग में तो विविध प्रकार के।
सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)