ले लेकर जी रहा हूँ जीवन में तो जग में उम्मीदों का सहारा
पर प्रभु तू ही तो है मेरी उम्मीदों का सहारा मेरी उम्मीदों का सहारा।
उम्मीदों बिना चले जीवन कैसे, उम्मीदें ही है जीवन का सहारा
ना उम्मीदों के उठा के भार जीना, ना जीवन तो उसे समझना।
निराशाओं की ठेस लगी है सब को जीवन में, ना कोई इससे बचा,
फिर भी उम्मीदें भर भर के दिल में, इन्सान जग में तो है जी रहा।
उम्मीद बिना ना है कोई दिल खाली, जग इसलिये चल रहा,
टूटे हुए दिल में आकर बसते हैं प्रभु, दे दे के उम्मीदों का सहारा।
उम्मीदों का ही ना बनाना जग, जग में ले लेकर उम्मीदों का सहारा,
ना रुकेगी उम्मीदें जीवन में, जब तक ना होगा प्रभु से मिलना।
सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)