दे देकर आवाज बुला रहा हूँ प्रभु तुझे चले आना मेरी आवाज सुन के
रुक गया था जीवन में मैं आवाज देते, ना रुकना तो तू मेरी आवाज सुन के।
इन्सानियत की रोशनी जलाई है जो दिल में बुझने ना देना मेरे दिल में
भरा है पूरा भाव मैंने तो दिल में, प्रभु चले आना मेरी आवाज सुन के।
पाया है जीवन में तो जो जो, मेरे कर्मों से मगर दिया है तो तूने वह दिल से।
आधार है जब तू जीवन का तो मेरे, प्रभु चले आना मेरी आवाज सुन के।
चले आना प्रभु चले आना, गलियों में तो मेरे, जग में तो ना भूल के।
बना के इन्सान भेजा है जब इस जग में, चलाना मुझे इन्सानियत की राह पर।
दुःख दर्द की गलियों में ना पैर मुझे रखने देना, जग में मुझे तेरा बनाकर
देर ना करना, ना रुकना अब तो प्रभु, चले आना मेरी आवाज सुन के।
सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)