निभा सको तो साथ पूरा निभाना, करना ना सिर्फ सपनों में आना जाना।
जब जीवन में मिल सकते हो, फिर सपनों में ही क्यों करते हो आना जाना?
रुक जायेंगे कदम मिलन के, जो हो जाये, सपनो में अपनों का मिलना।
मिलने का ही इंत़जार रुक जायेगा, जो सपनो में ही होता रहेगा मिलना।
मिलन तो अंतर से अंतर का मिलन करना, अंतर की आवाज सुनते ही चले आना,
पहुँचना है जब अंतर तक, अंतर के मिलन के लिये तुम तैयार रहना।
अंतर के मिलन में जो रुकावट डाले, वह रुकावटों को तुम दूर ह़टाते जाना,
हो जायेगा जब दिल से दिल का मिलन, तब हो जायेगा जीवन में मिलना।\
सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)