दर्द से भरा-भरा तो दिल है, फिर भी होठों पर क्यों खामोशी है?
अंतर तो कुछ कहना चाहता है, फिर भी होंठ क्यों चुप हैं?
नज़रों ने जो देखा, दिल ने वही चाहा, फिर भी दिल क्यों उदास है?
क्या दिल को लगा, मंजिल उसकी, आसमाँ से ऊँची है?
कब तक यह, सह सकेगा दिल, दिल दर्द से भरा हुआ है
पहुँच जाये जब दिल, नज़रों के पास, नज़रे आँसू बहा देती हैं।
दिल चाहता था, दर्द का राज़, राज़ रहे, राज़ दिल में छुपा रहे
चेहरे ने साथ ना दिया, चेहरे पर छाई हुई उदासी ने राज़ खोल दिया है।
कभी आँसू बन के वह बह गया, कभी आह निकाल के वह कह गया है
आखिर वह राज राज ना रहा, जब नज़रों को, चेहरे ने धोखा दिया।
सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)