खोया हुआ, जीवन संगीत ढूँढ़ रहा हूँ, दिल तू सँभल के रहना,
जितना सफर चल रहा है पैर मेरे, सफर में, ना तू डगमगाना।
छोड़ दे नज़र तो तू गमगीनी, आखिर दिल को भी तो सँभालना है,
मन तू साथ पूरा देना, छोड़ के तेरा जगह जगह पर तो भटकना।
छेड़ रही कुदरत तो हरदम, भरा-भरा तो उनका तो तराना,
चूकना ना दिल तू, थामना तो इसे, जीवन में तो कुदरत का तराना।
दिल तू झूम उठना, पवन की लहरें छेड़ें जब उसका तो तराना,
नदियों की धारा में बह रहा है, उसका तो तराना, दिल तू उसे थाम लेना।
समुद्र की लहरें छेड़ रहा है संगीत उसका, उसे थामना ना तू भूलाना,
चाँद की किरणें, भेज रही हैं संगीत उसका, दिल तू दिल में रखना।
सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)