दुःख-दर्द को दावत किस ने दिया है, किसी को ना वह प्यारा लगा है
फिर भी इस संसार में तो, दुःख दर्द ने, किसी को ना छोड़ा है।
हर इन्सान के जीवन में, पल दो पल का, प्रवेश इसका तो होता है,
सुख में डूबे हो या ना डूबे हो, सब इन्सान को तंग इसने किया है।
सुखी इन्सान तो ढूँढ़ना पड़ता है, दुःख से पीड़ित, नज़र नज़र में आता है
इन्सान का जीवन तो खुला है, प्रवेश सब कुछ पा जाता है
दुःख दर्द, नज़र और दिल का सहारा लेकर, अश्रु बनके बह जाता है।
सुख-दुःख के दो किनारे के बीच, जग में जीवन तो बह जाता है।
दुःख जीवन की शक्ति हरता है, बीते हुए दिन की याद दिलाता है
दुःख सुख का रास्ता दिखाता है, दुःख किसी को प्रिय नही लगता है।
सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)