बनते-बनते तो बन जायेगी, अपनी बात, अपनी कहानी
कहाँ से शुरू हुयी, कहाँ खत्म होगी, समझ में ना आयेगी।
कहां-कहां पर रुकेगी, कहाँ पहुँचायेगी समझ में न आयेगी
जब से जीवन में हो गई शुरू, जीवन में ताजगी आ गयी।
ना वह तो रूकी, रही है अब तक तो चलती चलती
रसों का विविध भंडार, वह जीवन में तो लेकर आई।
बात तो बनती जायेगी, कहानी तो आगे बढ़ती जायेगी
नज़र में बात जब नही आयेगी, कहानी वहाँ रूक जायेगी।
बातों में जब तक मस्ती रहेगी, कहानी में मस्ती आयेगी
कहानी बढ़ते बढ़ती जायेगी, कहाँ रुकेगी समझ में न आयेगी।
सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)