यदि मेरी निगाह को, तेरी निगाहों से मिलन के काबिल ना समझा, 
ना सही प्रभु, तेरी एक तिरछी नज़र की तो इनायत करना।
यदि समझा तूने प्रभु, सह ना सकेगी निगाह मेरी, तेज तो तेरा 
तेरी निगाह के बाहर ना जा सकेंगे, तेरी तिरछी नज़र की तो इनायत करना।
दिल तो चाहता है सुख का साथ, सुख तो है तेरे चरणों में 
ना हम पर से तो निगाह हटाना, तेरी एक तिरछी नज़र की तो इनायत करना।
जहाँ भी जाऊँ तू साथ में रहना, ना अकेला हमें रहने देना 
ना इन्कार है मेरा तेरे चरणों को, तेरी एक तिरछी नज़र की तो इनायत करना।
रुक जाये जीवन में जहाँ कदम मेरा, कदमों में बल तू ही देना 
मेरे कदमों को ऐसा चलाना, पहुँचाये दर पर तेरे, तेरी एक तिरछी नज़र की इनायत करना।
                               सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)