रोये रोये रोये, जग में तू काहे को रोये, तू काहे को रोये
आया जग में तू रोते-रोते, अब रहना तू जग में हँसते-हँसते।
आया खाली हाथ जग में, रहा ना खाली जीवन में, अब तू काहे को रोये,
सुख-चैन में रहना, दिल का सुख ना खोना, दुःख में काहे को डूबे।
जागते-सोते, जग में तो प्रभु, ख्याल सबका तो हैं रखते,
जलती है ज्योत, जब तक तेरे अंदर, रही है वह जलती।
तू भूल गया, याद करना तो उन्हें, फिर भी वह याद करता है तुझे,
मिली सफलता निष्फलता कई बार जीवन में, ना बैठो निराश हो के।
स्वीकार लिया है दर्द जीवन में, दर्द को तो तोहफा समझ के,
दिल के आँगन में प्रभु की यादों के फूल खिलते रहे हैं।
सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)