हरदम करवाता रहा सामना मुझसे, ना शक्ति है मुझ में पूरी
है आदत तो तेरी यह बुरी (2)
कहने बैठूँ जब तेरे सामने चुप कर देता है तू मुझे
ना सुनना बात मेरी, है यह आदत तेरी बुरी।
था पास में मैं तेरे, था पास में तू मेरे, फिर भी ना जाने कैसी है ये दूरी
हमें बिठा के सामने ओझल हो जाना नज़रों से, यह ...
राह देखता हूँ मैं तेरी, नज़रों से, नज़रें ना मिलाना
आता जाता रहा, रहा मनमानी करता, तू ना आया
माना कमजोरियाँ थी, हटाई नही सब कामनायें मेरी।
हर बार देखना चाहता है मुझे, हँसता मौका पाकर रुला दिया,
मजबूरियों से भरे थे हम, ना मजबूर था तू, क्यों हालत की ऐसी मेरी।
तेरे बिना कमजोर हूँ मैं, सदा रहम ना खाई तूने मेरी
खेल खेले बहुत तूने, ना आदत में तेरी तूने कुछ बदली की।
सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)