पूछा मैंने अपने ख्वाब को कहाँ से आया क्या लाया?
क्यों आया तू मेरे पास में?
तेरी शान की क्या मैं दाद दूँ, हकीकत में ना था में जो
ख्वाबों में सब कुछ मुझे बना दिया।
मैं गम भी भूल गया, सारे जहाँ को भी भूल गया
तुझे मैं योगी कहूँ के क्या कहूँ, समझ में नहीं आता।
मेरी सल्तनत की सरहदें बना दी इतनी बुलंद,
मेरी सरहद मेरी नज़र में नहीं आती।
ना किसी चीज का कैफी था, फिर भी तूने मुझे ख्वाब के कैफ पर चढा दिया।
मैं जानता ना था कि मैं कुछ हूँ, फिर भी तूने मुझे मेरी जहाँ का सुलतान बना दिया।
सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)