अगर ज़िंदगी में तूफान ना आता, तुझे ढूँढ़ने का बहाना ना मिलता,
डगमगाती मेरी कश्ती को चलाने वाले, जरा इतना तो सोच दिल में।
यदि तू ना होता तो इस जहाँ में, हाल मेरा क्या होता?
कभी उठती ऊँची कश्ती हमारी, डूब जाती बीच भँवर में
अगर तू ना उसे संभाल लेता, तुझे ढूँढ़ने का बहाना ना मिलता
चारों दिशाओं में छाया हुआ है अँधेरा तू ही तो है प्रकाश देने वाला,
उठता है तो तूफान जब जीवन में, तू ही तो है सँभालने वाला।
विचारों के आगे तो तू है, विचारो में रहता है तू ही तो है तू,
यदि हमे तेरा विचार ना आता, कैसे तुझे हम खोज पाते।
यदि तू ही ना पार लगाता, तुझे ढूँढ़ने का बहाना ना मिलता
यदि नज़र के सामने से ओझल न तू हो, तुझे ढूँढ़ने का बहाना ना मिलता।
सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)