हम तो चले जा रहे हैं, जीवन में हम तो चले जा रहे हैं,
पता नही, हम तो कहाँ जा रहे हैं, हम तो चले जा रहे हैं।
डगमगाते हैं पैर तो हमारे, हम तो जा रहे हैं, जहाँ पैर ले जा रहे हैं,
रास्ते हैं तो नये, दृश्य भी तो है नया, देखते देखते जा रहे हैं।
पता नहीं है मंजिल का, पता नही जीवन में हम तो कहाँ जा रहे हैं,
हमें हमारी मंजिल का नही है पता, ना औरों की मंजिल का पता है,
करे तो करे, साथ किस का ना किसी पर तो हमें यकीन है,
रुकावटों का करके सामना, जीवन में हम तो चले जा रहे हैं।
प्रभु पर रखकर यकीन, हम तो यकीनों के बल से चले जा रहे हैं।
सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)