मजबूरियों से भरी हुई है, कहानी, इसी का नाम तो है जिंदगानी।
कभी जिंदादिली दिखाती, आखिर मजबूरियों के द्वार रही है खटखटाती,
पुराण पुरुष हो या आधुनिक मानव हो, मजबूरियों के बिना अधूरी है कहानी।
कई झुके, कई खत्म हुए लड़ते, सबको सता रही है, तो मजबूरी,
वजह है सब की अलग-अलग, फिर भी परिणाम एक वह है मजबूरी।
करना चाहो सब कुछ, करना सको कुछ भी, रुकवा देती है मजबूरी,
मजबूरियों को कम ना समझो, जीवन में सबसे बडी है वह बीमारी।
सबके दिल का कोई मर्म स्थल ढूँढ़ के, वह स्थान वहाँ जमा देती,
है ताकत सबसे बड़ी, जीवन में बिन ड़ोर वह बाँध देती है।
सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)