देखा तो इस जहाँ में, हर चेहरे पर, तेरा नूर चमकता दिखाई देता है।
हर इन्सान के दिल में, कोई न कोई तो तमन्ना दिखाई देती है।
कम इन्सान मिले, चेहरे पर जिसकी, झलक सत्य की दिखाई देती है।
डूबे हुए हैं खुद में इतने की, खुदाई नहीं दिखाई देती है।
हर दिल में धड़कन धडकती है, बोली अलग अलग निकलती है।
सब में तो लहू बहता है, फिर भी रंग सब में लाल ही रहता है।
हर इन्सान तो इन्सान होता है, भाग्य फिर भी अलग रहता है।
तन-बदन चेहरे अलग होते हैं, प्रभु फिर भी एक रहता है।
सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)