आया जग में जब तू अकेला, जायेगा जग से अकेला, ना कुछ लाया, ना लेकर जायेगा
समझ सके तो समझ ही जाना, ना कोई है तेरा, ना कोई पराया
है चंद दिनों का जग में बसेरा, ना कोई जग में कायम रहने पाया
बनाया किसको तूने अपना, बनाया किसको तूने पराया
जो हाल है तेरा, है हाल सबका, फिर किस बात का रोना आया
मिला है जो तुझे, मिला है सबको, फिर किस बात का रोना आया
पाता रहा है जग में तू तो, किस बात का गम तुझे आया
सब ले ले के भी संतोष न पाया, द्वार दुःख अपने हाथ ही खोला
जरूरतें कम जिसने रखी, सुख के नजदीक वह पहुँच पाया
सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)