1992-08-31
1992-08-31
1992-08-31
https://www.kakabhajans.org/bhajan/default.aspx?id=16145
एक हसीन ख्वाब था, न वहाँ कोई और था, मैं मेरी मस्ती में मस्त था
एक हसीन ख्वाब था, न वहाँ कोई और था, मैं मेरी मस्ती में मस्त था,
न वहाँ फिक्र चिंता का दर्द था, जो था वह मैं और मैं ही था, मैं मेरी मस्ती...
न वहाँ कोई दृश्य था, ना दृष्टि थी, अनुभव के सिवा ना और कुछ था, मैं मेरी मस्ती...
मैं कौन हूँ, क्या हूँ, न इसका पता था, जो था वह मैं और मैं ही था, मैं मेरी मस्ती...
न वहाँ कोई ज्ञान था, न ज्ञानी था, आनंद के बिना न वहाँ कुछ और था, मैं मेरी मस्ती...
न वहाँ कुछ लेना था, न देना था, जो था वह तो मैं और मैं ही था, मैं मेरी मस्ती ...
न वहाँ शब्द था, न सुनने वाला था, वहाँ तो मैं एक और एकाकार था, मैं मेरी मस्ती...
बताऊँ तो किसे बताऊँ, मैं और मेरे सिवा न वहाँ तो कोई और था, मैं मेरी मस्ती...
न वहाँ समय था, न समय का ज्ञान था, मैं खुद समय के पार था, मैं मेरी मस्ती...
न वहाँ कोई ग्लानि थी, वहाँ तो सिर्फ, आनंद, आनंद और आनंद था, मैं मेरी मस्ती...
https://www.youtube.com/watch?v=q87MmbY_MFw
Satguru Shri Devendra Ghia (Kaka)
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एक हसीन ख्वाब था, न वहाँ कोई और था, मैं मेरी मस्ती में मस्त था,
न वहाँ फिक्र चिंता का दर्द था, जो था वह मैं और मैं ही था, मैं मेरी मस्ती...
न वहाँ कोई दृश्य था, ना दृष्टि थी, अनुभव के सिवा ना और कुछ था, मैं मेरी मस्ती...
मैं कौन हूँ, क्या हूँ, न इसका पता था, जो था वह मैं और मैं ही था, मैं मेरी मस्ती...
न वहाँ कोई ज्ञान था, न ज्ञानी था, आनंद के बिना न वहाँ कुछ और था, मैं मेरी मस्ती...
न वहाँ कुछ लेना था, न देना था, जो था वह तो मैं और मैं ही था, मैं मेरी मस्ती ...
न वहाँ शब्द था, न सुनने वाला था, वहाँ तो मैं एक और एकाकार था, मैं मेरी मस्ती...
बताऊँ तो किसे बताऊँ, मैं और मेरे सिवा न वहाँ तो कोई और था, मैं मेरी मस्ती...
न वहाँ समय था, न समय का ज्ञान था, मैं खुद समय के पार था, मैं मेरी मस्ती...
न वहाँ कोई ग्लानि थी, वहाँ तो सिर्फ, आनंद, आनंद और आनंद था, मैं मेरी मस्ती...
सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)
ēka hasīna khvāba thā, na vahām̐ kōī aura thā, maiṁ mērī mastī mēṁ masta thā,
na vahām̐ phikra ciṁtā kā darda thā, jō thā vaha maiṁ aura maiṁ hī thā, maiṁ mērī mastī...
na vahām̐ kōī dr̥śya thā, nā dr̥ṣṭi thī, anubhava kē sivā nā aura kucha thā, maiṁ mērī mastī...
maiṁ kauna hūm̐, kyā hūm̐, na isakā patā thā, jō thā vaha maiṁ aura maiṁ hī thā, maiṁ mērī mastī...
na vahām̐ kōī jñāna thā, na jñānī thā, ānaṁda kē binā na vahām̐ kucha aura thā, maiṁ mērī mastī...
na vahām̐ kucha lēnā thā, na dēnā thā, jō thā vaha tō maiṁ aura maiṁ hī thā, maiṁ mērī mastī ...
na vahām̐ śabda thā, na sunanē vālā thā, vahām̐ tō maiṁ ēka aura ēkākāra thā, maiṁ mērī mastī...
batāūm̐ tō kisē batāūm̐, maiṁ aura mērē sivā na vahām̐ tō kōī aura thā, maiṁ mērī mastī...
na vahām̐ samaya thā, na samaya kā jñāna thā, maiṁ khuda samaya kē pāra thā, maiṁ mērī mastī...
na vahām̐ kōī glāni thī, vahām̐ tō sirpha, ānaṁda, ānaṁda aura ānaṁda thā, maiṁ mērī mastī...
English Explanation |
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In this bhajan, kakaji has jroted down his feelings about finding yourself. When we find inner peace and other than happiness nothing else we can feel.
It was a beautiful dream, no one else was their, I was busy in my mesmerized fun.
Their was no worries of pain or sorrow, there was the only the presence of me and myself, I and my mesmerized fun.
Neither their was any visual, nor sight, other than experience nothing else was their, I and my mesmerized fun.
Who I am, what I am, was not knowing this, its was only me and me, I and my mesmerized fun.
Their was no knowledge, nor intelligence, without happiness nothing else was their, I and my mesmerized fun.
Neither I had to give anything nor to take anything, whatever was their was only me and me, I and my mesmerized fun.
Neither their was a whisper of any word, nor any listener, only I was their all alone, I and my mesmerized fun.
Whom should I tell, other than me no one else was their, I and my mesmerized fun.
Neither their was a time machine nor could understand the time, I myself was away from the time, I and my mesmerized fun.
Neither their was any guilty, their was only happiness, happiness and happiness, I and my mesmerized fun.
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