कल तक जो बात ना थी, वह बात तो आज हो गई,
तीर तो ऐसा छूटा, निशान दिल को वह बना गई।
कर दिया उस तीर ने हालत तो ऐसी, बात उसमें बन गई,
घायल तो बना दिया, दवा घायल बनाने वाले के पास रह गई।
यह क्या कुछ कम था, हर अदाओं से वाह वाह कर गई,
हर अदा का नशा चढ़ा ऐसा, नशे में मुझे डुबो गई।
जो साँस कल तक मंद थी, वह आज तेज गति में चल रही,
वह वक्त की पुकार थी, आज वह दिल की आवाज बन गई।
नज़र में वह नज़र बस गई, वह नज़र मुझे बेबस बना गई,
आज वह बात तो बन गई, नये रुप में नयी कहानी बन गई।
सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)