नज़रों से नज़र तो तेरी, मिली जहाँ नज़र तो मेरी, मैं होश खो बैठा, मदहोश बन गया,
तेज नज़रों ने तो तेरा, निशाना दिल को बना दिया, सब होश तो मेरा भुला दिया।
जी रहा था ज़िंदगी जिस तरह तो मेरी, उसमें बदलाव वह तो ला गया,
जीवन में जो खुशियाँ खो बैठा, खुशियाँ जीवन में तेरी नज़रों ने भर दिया।
जो राह थी, थी मेरे लिये तो नयी, जीवन में मुझे उस राह पर चला दिया,
ना रहा था मैं मुझमें, खो गया था मैं तो तुझ में, सब-कुछ भुला दिया।
नज़रों में से मेरे सब कुछ हट गया, तेरी तस्वीर बिना ना कुछ रहने दिया,
तेरी ऩजर बन गई ज़िंदगी तो मेरी, तेरी नज़र बिना जीना मुश्किल बना दिया।
यह तो है मेरे दिल का हाल-ए-बयाँ, अब नज़र तेरी मुझ से हटा ना लेना,
नज़र तो तेरी मिलाते रहना, ना मेरी नज़रों से नज़र तेरी तू हटा लेना।
सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)