माना की तेरे आगे मैं कुछ भी नही, तेरी हस्ती के बिना मेरी हस्ती नही,
फिर भी यकीनन मैं यह कह सकता हूँ, तेरे बिना मेरे दिल में और कोई नही।
हर साँस में भरी हुई है जो गर्मी तेरे बिना और किसी की नही,
नज़रें फिर रही है तो जग में, तेरे जैसी मोहब्बत भरी, नज़र और किसी की नही।
अलग अलग दिखाई दे रहा है, भले ही तू, तू मुझ से, मैं तुझ से अलग नही,
आगे आगे चल रहे हैं हम, रख के दृष्टि तुझ पर और कही दृष्टि तो नही।
पाया है जो तेज तो जीवन में, वह तेज जीवन में, तेरे बिना और किसी का नही,
हर विचार में समाया है तू मेरे जीवन में, तेरे बिना तो और विचार नही।
शक्ति बिना चलता नही कोई, जग में, तेरी जैसी शक्ति और किसी की नही,
करता हूँ जो मैं, हाज़िर है वहाँ तू, तेरे बिना किसी की हर दम हाज़िर नही।
सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)