क्या जानूँ क्या कमी थी मुझ में? रखा है दूर तूने तो मुझे
ख़फा नही है अगर जो तू मुझसे, फिर दूर रहा है क्यों तू मुझसे?
कभी दिल भरा-भरा तो रखा, कभी-कभी महसूस करवाये मेरे दिल को
हकीकतों ने खूब खिलाये मुझे, अब हकीकतों पर ऐतबार करूँ मैं कैसे?
हर वक्त तो बात करूँ मैं नई नई, तू तो वही का वही रहता है।
देख रहा हूँ राह तेरे मिलन की, क्यों देर कर रहा है तू मिलने में?
बता दे तू कमी मेरी, कर दूँ मैं उसे पूरी, रखूँ ना दूर मैं तो तुझे,
हर वक्त की तरह, कमी तो मेरी, तुझे मुझ से तो दूर रखती है।
क्या कहूँ, क्या करूँ, जब जीवन में मैं तो कुछ नहीं जानता रे,
जनम जनम तो गये है बीत, जीवन में कमी ना पूरी हुई है।
सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)