तू ही तो चित्त में आता है, तू ही तो ख्वाब में आता है,
तू तो सामने आता है, ना जाने किस किस रुप में तू ही तो आता है।
कभी कहाँ से आता है, कहाँ जाता है, ना पता लगने तो देता है
तू तो जहाँ भी रहता है, हमें तो खुश देखना चाहता है।
तू ही तो सब कुछ करता है, तू ही तो एक सबका जानकार है
कभी भी ना तू किसी का बुरा करता है, फिर क्यों तेरे पास कोई नही आता है
तेरे पास पहुँचने का रास्ता है सरल, फिर जग वह क्यों नही अपनाता है
तू दिलों दिमाग की सफाई का हिमायती है, वह साफ करके कोई नही आता है।
सब में सब के आसपास तेरा ही तो वास है, फिर भी ना तू दिखाई देता है
तू तो हर जगह तो रहता है, ना तेरा कही तो आना जाना रहता है।
सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)