जाने अनजाने किया है गुनाह प्रभु, जीवन में तो हमने,
तू यह ना कहना प्रभु, दी है सज़ा तूने तो अनजाने।
सज़ा तो तू देता ही है, देता है वह सोच समझ के,
ना तू कम देता है, ना तू ज्यादा देता है, सोच समझ के देता है।
सबका हिसाब तो है तेरे पास पूरा, ना कम ना ज्यादा देता है,
तेरी सज़ा में भी तो जग में सब का तो मंगल होता है।
जग तू चला रहा है, चला रहा है तेरी शक्ति से, गुनाह तो गुनाह है,
गुनहगारों की बस्ती ना तू बढ़ाना चाहता है, सज़ा देना तेरे हाथ है।
यकीन हो जाये तू सज़ा देने वाला है, गुनाह कम हो जाता है,
फिर कहने की जरूरत ना रहे, जाने अनजाने गुनाह किया है हमने।
सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)