Hymn No. 7840 | Date: 01-Feb-1999
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1999-02-01
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https://www.kakabhajans.org/bhajan/default.aspx?id=17827
सदियों से यह रोग चलता है, हर बार तो यह नया लगता है
सदियों से यह रोग चलता है, हर बार तो यह नया लगता है, जग के कोने-कोने में यह रोग फैला हुआ है, चेहरे बदलता रहा है। दिल में यह दर्द होता है, दिल ही तो इस दर्द की दवा है, यह प्रेम का तो सैनिक है, प्रेम से प्रेम में घायल होता है। जिस दिल से दिल को दर्द मिला, वही दिल उसकी दवा होती है, ना देश काल का बंधन है उसे, सब में यह पाया जाता है। इस रोग में पात्र सुंदर लगता है, मन उसकी ओर खींचता है प्रभु भी इस रोग के तो रोगी है, भक्तों से दवा चाहते हैं।
Satguru Shri Devendra Ghia (Kaka)
सदियों से यह रोग चलता है, हर बार तो यह नया लगता है, जग के कोने-कोने में यह रोग फैला हुआ है, चेहरे बदलता रहा है। दिल में यह दर्द होता है, दिल ही तो इस दर्द की दवा है, यह प्रेम का तो सैनिक है, प्रेम से प्रेम में घायल होता है। जिस दिल से दिल को दर्द मिला, वही दिल उसकी दवा होती है, ना देश काल का बंधन है उसे, सब में यह पाया जाता है। इस रोग में पात्र सुंदर लगता है, मन उसकी ओर खींचता है प्रभु भी इस रोग के तो रोगी है, भक्तों से दवा चाहते हैं।
सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)
Lyrics in English
sadiyom se yaha roga chalata hai, haar bara to yaha naya lagata hai,
jaag ke kone-kone me yaha roga phaila hua hai, chehare badalata raah hai|
dila me yaha dard hota hai, dila hi to isa dard ki dava hai,
yaha prem ka to sainika hai, prem se prem me ghayala hota hai|
jisa dila se dila ko dard mila, vahi dila usaki dava hoti hai,
na desha kaal ka bandhan hai use, saba me yaha paya jaat hai|
isa roga me patra sundar lagata hai, mann usaki ora khinchata hai
prabhu bhi isa roga ke to rogi hai, bhaktom se dava chahate haim|
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