Bhaav Samadhi Vichaar Samadhi - Kaka Bhajans
Bhaav Samadhi Vichaar Samadhi - Kaka Bhajans
Hymn No. 8742 | Date: 09-Aug-2000
खुदा करामत है तेरी कैसी लाखों किताबें पढ़ो समझ में नहीं आती
Khudā karāmata hai tērī kaisī lākhōṁ kitābēṁ paḍha़ō samajha mēṁ nahīṁ ātī

પ્રકૃતિ, લીલા (Nature, Gods play)

Hymn No. 8742 | Date: 09-Aug-2000

खुदा करामत है तेरी कैसी लाखों किताबें पढ़ो समझ में नहीं आती

  No Audio

khudā karāmata hai tērī kaisī lākhōṁ kitābēṁ paḍha़ō samajha mēṁ nahīṁ ātī

પ્રકૃતિ, લીલા (Nature, Gods play)

2000-08-09 2000-08-09 https://www.kakabhajans.org/bhajan/default.aspx?id=18229 खुदा करामत है तेरी कैसी लाखों किताबें पढ़ो समझ में नहीं आती खुदा करामत है तेरी कैसी लाखों किताबें पढ़ो समझ में नहीं आती,

दिल में उठती हैं उम्मीदों की तरंग, लेकिन जीवन में पूरी नहीं होती।

उम्मीदों से न रखा इन्सानों को खाली, रखी इस पर तेरी रखवाली,

फैलाई जग में प्यार की बूँद बूँद तूने, रखा ना दिल इन्सान का प्रेम से खाली।

अँधेरे उजालें की धूप-छाँव में, गुजरना पड़ता है, बनता है हर इन्सान राही,

खुदा माने तू जिसे मंजूरी की मोहर, इन्सान की किस्मत रहती नही खाली।

दुःख दर्द की जाल है तूने ऐसी बिछाई, इन्सान को पड़ता है चलना बन के राही,

हर एक इन्सान के दिल में बसेरा तेरा, फिर भी इन्सान की नज़र तेरा दीदार कर नही पाती।
View Original Increase Font Decrease Font


खुदा करामत है तेरी कैसी लाखों किताबें पढ़ो समझ में नहीं आती,

दिल में उठती हैं उम्मीदों की तरंग, लेकिन जीवन में पूरी नहीं होती।

उम्मीदों से न रखा इन्सानों को खाली, रखी इस पर तेरी रखवाली,

फैलाई जग में प्यार की बूँद बूँद तूने, रखा ना दिल इन्सान का प्रेम से खाली।

अँधेरे उजालें की धूप-छाँव में, गुजरना पड़ता है, बनता है हर इन्सान राही,

खुदा माने तू जिसे मंजूरी की मोहर, इन्सान की किस्मत रहती नही खाली।

दुःख दर्द की जाल है तूने ऐसी बिछाई, इन्सान को पड़ता है चलना बन के राही,

हर एक इन्सान के दिल में बसेरा तेरा, फिर भी इन्सान की नज़र तेरा दीदार कर नही पाती।




सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)
Lyrics in English Increase Font Decrease Font

khudā karāmata hai tērī kaisī lākhōṁ kitābēṁ paḍha़ō samajha mēṁ nahīṁ ātī,

dila mēṁ uṭhatī haiṁ ummīdōṁ kī taraṁga, lēkina jīvana mēṁ pūrī nahīṁ hōtī।

ummīdōṁ sē na rakhā insānōṁ kō khālī, rakhī isa para tērī rakhavālī,

phailāī jaga mēṁ pyāra kī būm̐da būm̐da tūnē, rakhā nā dila insāna kā prēma sē khālī।

am̐dhērē ujālēṁ kī dhūpa-chām̐va mēṁ, gujaranā paḍa़tā hai, banatā hai hara insāna rāhī,

khudā mānē tū jisē maṁjūrī kī mōhara, insāna kī kismata rahatī nahī khālī।

duḥkha darda kī jāla hai tūnē aisī bichāī, insāna kō paḍa़tā hai calanā bana kē rāhī,

hara ēka insāna kē dila mēṁ basērā tērā, phira bhī insāna kī naja़ra tērā dīdāra kara nahī pātī।
Scan Image

Hindi Bhajan no. 8742 by Satguru Devendra Ghia - Kaka
First...873787388739...Last