दिन रात बीत रहे हैं, गिन-गिन के तारे
निराशाओं के बादलों में, छिप गई हैं आशाओं की किरणें।
प्यार की ज्योत जली दिल में, राह जीवन में वह तो दिखाये।
सुख की आस दुःख की निराशाओं में बदलती तो जाये।
अँधेरी राहों में चल रहे हैं, कोई अनजान आकर रास्ता दिखाये,
नींद से भी मिले ना ताजगी, थकावट की नींद तो आये।
चारों ओर है अँधेरा ही अँधेरा, मंजिल ना दिखाये,
मोह लालच की पहनी है जंजीर, जीवन में ना तोड़ पाये।
उमंगों से की शुरूआत, मिला दीवानापन तो बदले में,
रूकावटों को करना है पार, समझ में ना आवे तो कैसे?
सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)