किस्मत तो है प्रभु ने रचाई तेरे ही कर्मों ने है उसे बनाई,
तकदीर की लकीरें गहरी कैसे ऐसी बनाई, तुझसे ना है मिटे मिटाई।
तकदीर ने खेल खेला ऐसा कैसे लेने लगी है जीवन अंगड़ाई
मिटाये ना मिट सकी कर्मों की रेखा, रेखा ऐसी कैसे बनाई?
दुःख दर्द की तस्वीर रही उभरती दिल में तस्वीर ऐसी कैसे बनाई?
ना आगे ना पीछे चल सके राह तकदीर ने ऐसी कैसे बनाई?
सुख की ओर था बढ़ना, दुःख की ओर जीवन को क्यों खींच लाई?
यह चाल तो है सब कर्मों की, कर्मों पर पकड़ रखना मेरे भाई।
सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)