1996-08-10
1996-08-10
1996-08-10
https://www.kakabhajans.org/bhajan/default.aspx?id=12330
है यह कैसी बात, दिल देना चाहता है साथ, मन में उठा है क्यों उत्पात
है यह कैसी बात, दिल देना चाहता है साथ, मन में उठा है क्यों उत्पात
ढूँढ़ रहा है दिल जीवन में ऐसा साथ, कर सके हासिल मंजिल अपने हाथ।
है मुक्ति तो मंजिल जीवन की, फिर भी मन खेल रहा है क्यों माया के हाथ
है तमन्ना भरी हुई दिल में, मन नही दे रहा है, क्यों उनका साथ।
कब कहाँ रूकेगी यह दिल की बात, है मन इन बातों से अज्ञात
ढूँढ़ते ढूँढ़ते जग में यह साथ, खेल रहे हैं जग में, वह समय के हाथ।
किया जो जो दिल ने दिया ना मन ने उनका साथ है, जीवन में यह ऐसी बात
रूक गई मंजिल वहाँ की वहाँ, पहुँच ना सके जब मंजिल के पास।
हासिल करना है जब मंजिल, पहुँचना पड़ेगा तब तो मंजिल के पास,
दिल को मन को देना होगा साथ, दोनों को मिलाना होगा अपना हाथ।
https://www.youtube.com/watch?v=GlTdAxQIF9o
Satguru Shri Devendra Ghia (Kaka)
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है यह कैसी बात, दिल देना चाहता है साथ, मन में उठा है क्यों उत्पात
ढूँढ़ रहा है दिल जीवन में ऐसा साथ, कर सके हासिल मंजिल अपने हाथ।
है मुक्ति तो मंजिल जीवन की, फिर भी मन खेल रहा है क्यों माया के हाथ
है तमन्ना भरी हुई दिल में, मन नही दे रहा है, क्यों उनका साथ।
कब कहाँ रूकेगी यह दिल की बात, है मन इन बातों से अज्ञात
ढूँढ़ते ढूँढ़ते जग में यह साथ, खेल रहे हैं जग में, वह समय के हाथ।
किया जो जो दिल ने दिया ना मन ने उनका साथ है, जीवन में यह ऐसी बात
रूक गई मंजिल वहाँ की वहाँ, पहुँच ना सके जब मंजिल के पास।
हासिल करना है जब मंजिल, पहुँचना पड़ेगा तब तो मंजिल के पास,
दिल को मन को देना होगा साथ, दोनों को मिलाना होगा अपना हाथ।
सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)
hai yaha kaisī bāta, dila dēnā cāhatā hai sātha, mana mēṁ uṭhā hai kyōṁ utpāta
ḍhūm̐ḍha़ rahā hai dila jīvana mēṁ aisā sātha, kara sakē hāsila maṁjila apanē hātha।
hai mukti tō maṁjila jīvana kī, phira bhī mana khēla rahā hai kyōṁ māyā kē hātha
hai tamannā bharī huī dila mēṁ, mana nahī dē rahā hai, kyōṁ unakā sātha।
kaba kahām̐ rūkēgī yaha dila kī bāta, hai mana ina bātōṁ sē ajñāta
ḍhūm̐ḍha़tē ḍhūm̐ḍha़tē jaga mēṁ yaha sātha, khēla rahē haiṁ jaga mēṁ, vaha samaya kē hātha।
kiyā jō jō dila nē diyā nā mana nē unakā sātha hai, jīvana mēṁ yaha aisī bāta
rūka gaī maṁjila vahām̐ kī vahām̐, pahum̐ca nā sakē jaba maṁjila kē pāsa।
hāsila karanā hai jaba maṁjila, pahum̐canā paḍa़ēgā taba tō maṁjila kē pāsa,
dila kō mana kō dēnā hōgā sātha, dōnōṁ kō milānā hōgā apanā hātha।
English Explanation |
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In this bhajan Shri Devendra Ghia ji also known as kakaji by his followers is indicating that both heart and mind have to work together to reach ultimate destination (Salvation) of life
How is it, heart wants to come, why is there disturbance in mind.
Heart is looking for support in life, could achieve destination by its own hand.
Salvation is the destination of life, then also the mind plays into the hand of illusion.
Heart is full of desire, why this mind is not supporting them.
Where and when would the heart stop, mind is unaware of it
Looking in this world for togetherness, playing in this world within the hands of time.
Whatever this heart has done, mind has never supported, there is such thing in life.
Destination stopped then and thete, when could not reach the destination.
To achieve destination, you have to reach the destination.
Heart and mind would have to support each other, both would have to come together.
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