ना पूछो मुझे प्यारे, मैं कौन हूँ, कहाँ से आया हूँ?
ना मैं वह जानता हूँ, ना बतला सकता हूँ।
देख रहा हूँ, जग में तो प्यारे, आने वाले आते हैं, जाने वाले जाते हैं
नाकामयाब रही हर कोशिशें, रुक ना सकी यादों की बारातें।
ना किसी के कहने से, जग में तो ना कोई रुक सके
हर दृश्य गुजर रहा है, नज़र के सामने से, ना वह रुक सके।
रुक न सके जीवन में, पवन, दिन और रातें
हर घड़ी हर पल जीवन में बदलती रहे, किसी के लिए ना रुके।
सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)