जा के पूछा मैं ने प्रभु को, आप क्यों खोये खोये से हो?
प्रभु ने यह बतलाया, सब अपनी अपनी यादो में खोये हैं,
मैं तो इस जहाँ में तो सब की याद में तो खोया हुआ हूँ
सब अपनी अपनी यादों में खोकर, मुझे तो भूल जाते हैं।
मैं तो सबकी यादों में खो जाकर, सब को याद रखता हूँ
सबके दिल में रहकर, जग में ना अकेलापन महसूस करता हूँ।
ना मैं किसी से अलग हूँ, ना किसी को अलग रखता हूँ
ना कम कभी मैं होता हूँ, ना कम किसी को रखता हूँ।
जहाँ-जहाँ में जाऊँ, सब साथ में तो मेरे मैं तो रखता हूँ
खो जाना चाहूँ मैं जग में, तब भी ना मैं खो सकता हूँ।
सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)