आदमी, आदमी को जब लेता है देता है, जग सारा तो वह देखता है,
खुदा जब लेता है देता है, जहाँ की नज़र में जल्दी वह नही आता है।
आदमी का खौफ तो नज़र में आता है, खुदा का खौफ देर से समझ में आता है,
आदमी जो सोचता है, वह नही होता है, खुदा जो करे, वही जहाँ में होता है।
आदमी मकसद के साथ लेता है, देता है, खुदा बिना मकसद करता है।
खुदा ने तो बख्शी है ज़िंदगी, आदमी ने खुदा को तो क्या दिया है?
समझ की रफ्तार में आदमी खुदा को भूलता है, खुदा इन्सान को याद रखता है।
जहाँ में तो आदमी बदलते रहते हैं, खुदा तो, वही का वही होता है।
जहाँ में ढूँढ़ने से आदमी मिल जाता है, खुदा ढूँढ़ने से भी जल्दी नही मिलता है।
सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)