Hymn No. 4969 | Date: 03-Oct-1993
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घिस-घिसकर, दे गया जग को, सुगंध और शीतलता तो चंदन वह सिखा गया इन्सान तुझे, बना इस तरह तेरा तू जीवन। कीचड़ से बाहर आकर, अलिप्त रहकर, निकला जैसे कमल रंग काला होते हुए भी, करती रही कोयल तो मीठी गुंजन। फिरते-फिरते खूब फेरे, रहा वही का वही, जग में तो घानी का बैल सागर तो बना रहा है, सुख-दुःख की, भरती ओट, करनी पड़ेगी सहन। तेरा नाखून बता रहा है, तुझे तेरा होते हुए भी, है तुझसे अलग, देना है प्रकाश जग को, दीपक जला कर के बता गया, तुझे जग कारण जलना पड़ेगा। जब तैरना है इस संसार में, नाव तैर कर सीखा गई, जल ऊपर तुझे उठना पड़ेगा। उठने का आनंद लेना है जब जग में, बंधन तोड के, पंख फैलाना पडेगा।
सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)
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