चला जा रहा है, चला जा रहा है, चला जा रहा है,
जीवन का यह कारवाँ, जग में उल्टा चला जा रहा है।
निकला था करने सौदा पूरा, छोड़ के अधूरा वापस जा रहा है।
निकला था जहाँ से, रखकर सौदा अधूरा, वहाँ वापस जा रहा है।
करने आया था भार खाली, भार भरके, चला जा रहा है।
करनी खाली थी जिम्मेदारी खुद की, छोड़ के अधूरी, चला जा रहा है।
रहकर गुमनाम जग में, गया भूल खुद की वह जिम्मेदारी, अंजाना-सा चला जा रहा है।
लौटना है समय पर, पहुँचना है समय पर, समय व्यर्थ गवाँ रहा है।
भार ना कर सका वह खाली, बढ़ाता और बढ़ाता जा रहा है।
सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)